Architectural wonders of the Chola dynasty
चोल वंश साम्राज्य, जो 9वीं से 13वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत में शासन कर रहा था, अपनी कला, संस्कृति और स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है। इस वंश के शासकों ने भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया, जो आज भी अपनी भव्यता और स्थापत्य कला की प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध हैं।
इस मेरी ये ब्लॉग पोस्ट में, हम चोल वंश साम्राज्य के स्थापत्य चमत्कारों पर प्रकाश डालेंगे, विशेष रूप से बृहदेश्वर मंदिर और तंजावुर पेरुवुदैयार मंदिर (Tanjore Peruvudaiyar Temple) पर ध्यान केंद्रित करते हुए।
बृहदेश्वर मंदिर: दक्षिण भारत का गौरव (Brihadisvara Temple: Pride of South India)
बृहदेश्वर मंदिर, जिसे बिग मंदिर (Big Temple) के नाम से भी जाना जाता है, तंजावुर (Thanjavur) में स्थित है और चोल वंश साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और 1010 ईस्वी में राजा राजा चोल प्रथम (Raja Raja Chola I) द्वारा निर्मित किया गया था।
बृहदेश्वर मंदिर अपनी भव्यता और स्थापत्य कला की उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है। यह मंदिर दक्षिण भारत का सबसे ऊंचा मंदिर है और 130 फीट (40 मीटर) ऊंचे विमान (spire) के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के चारों ओर ग्रेनाइट (granite) से बने छोटे-छोटे मंदिर (shrines) हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं।
बृहदेश्वर मंदिर की स्थापत्य कला में दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीय (North Indian) स्थापत्य शैलियों का मिश्रण देखने को मिलता है। मंदिर की दीवारों पर सुंदर मूर्तियां और नक्काशीदार कलाकृतियां (carved artworks) हैं, जो हिंदू धर्म (Hinduism) के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं।
बृहदेश्वर मंदिर को 1987 में यूनेस्को (UNESCO) द्वारा विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) घोषित किया गया था।
तंजावुर पेरुवुदैयार मंदिर: भगवान शिव का दिव्य निवास (Tanjore Peruvudaiyar Temple: Divine Abode of Lord Shiva)
तंजावुर पेरुवुदैयार मंदिर, जिसे गंगाकोंंडाचोलपुरम मंदिर (Gangai Konda Cholapuram Temple) के नाम से भी जाना जाता है, तंजावुर (Thanjavur) के पास गंगाकोंंडाचोलपुरम (Gangai Konda Cholapuram) में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और 1035 ईस्वी में राजा राजा चोल प्रथम (Raja Raja Chola I) के पुत्र राजा राजेंद्र चोल प्रथम (Raja Rajendra Chola I) द्वारा निर्मित किया गया था।
तंजावुर पेरुवुदैयार मंदिर: भगवान शिव का दिव्य निवास (Tanjore Peruvudaiyar Temple: Divine Abode of Lord Shiva) (continued)
तंजावुर पेरुवुदैयार मंदिर की स्थापत्य शैली बृहदेश्वर मंदिर से काफी मिलती-जुलती है, लेकिन इसमें कुछ विशिष्ट विशेषताएं भी हैं। मंदिर के चारों ओर ग्रेनाइट की एक विशाल दीवार है, जो इसे दुश्मनों से बचाने के लिए बनाई गई थी। मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी (Nandi – the bull, Lord Shiva’s vahana) की एक विशाल मूर्ति है, जो काले ग्रेनाइट से बनी है।
मंदिर की दीवारों पर हिंदू धर्म के विभिन्न देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं को दर्शाती हुई सुंदर मूर्तियां और नक्काशीदार कलाकृतियां हैं। मंदिर के अंदर गर्भगृह (sanctum sanctorum) में भगवान शिव की एक भव्य कांस्य प्रतिमा स्थापित है।
तंजावुर पेरुवुदैयार मंदिर को 1987 में बृहदेश्वर मंदिर के साथ ही यूनेस्को (UNESCO) द्वारा विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) घोषित किया गया था।
चोल स्थापत्य कला की विशेषताएं (Characteristics of Chola Architecture)
चोल वंश साम्राज्य की स्थापत्य कला की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
विराट मंदिर: चोल शासकों ने विशाल मंदिरों का निर्माण करवाया, जो उनकी शक्ति और समृद्धि का प्रतीक थे।
विमान (spire): चोल मंदिरों की एक प्रमुख विशेषता उनका ऊंचा विमान होता है, जो आकाश की ओर उठा हुआ प्रतीत होता है।
ग्रेनाइट का प्रयोग: चोल मंदिरों के निर्माण में मुख्य रूप से ग्रेनाइट का उपयोग किया जाता था, जो एक मजबूत और टिकाऊ पत्थर है।
विवरण में सटीकता: चोल मंदिरों की दीवारों और मूर्तियों पर उत्कृष्ट नक्काशी का काम किया गया है, जो उनके शिल्प कौशल का प्रमाण है।
धार्मिक चित्रण: चोल मंदिरों की दीवारों पर हिंदू धर्म के विभिन्न देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं को दर्शाती हुई मूर्तियां और कलाकृतियां हैं।
चोल स्थापत्य कला का महत्व (Importance of Chola Architecture)
चोल वंश साम्राज्य की स्थापत्य कला का भारतीय इतिहास और संस्कृति में बहुत महत्व है। यह कला शैली दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। चोल मंदिर न केवल धार्मिक स्थल हैं, बल्कि वे उस समय की कला, संस्कृति और इंजीनियरिंग कौशल का भी प्रदर्शन करते हैं।
चोल मंदिरों के अन्य उदाहरण (Other Examples of Chola Temples)
बृहदेश्वर मंदिर और तंजावुर पेरुवुदैयार मंदिर के अलावा, चोल वंश साम्राज्य द्वारा निर्मित कई अन्य महत्वपूर्ण मंदिर हैं। इनमें से कुछ उदाहरण हैं:
गंगईकोंडचोलपुरम: यह मंदिर तंजावुर के पास स्थित है और राजा राजेंद्र चोल प्रथम द्वारा निर्मित किया गया था। इस मंदिर की खासियत है कि इसमें नटराज (Natraja – dancing Shiva) की एक कांस्य प्रतिमा है, जिसे नृत्य कला में उत्कृष्ट कृति माना जाता है।
एयरकोट्टई (Airateshwar Temple): यह मंदिर तमिलनाडु के कडलूर जिले में स्थित है और राजा राज चोल प्रथम द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर की खासियत है कि इसकी छत इस प्रकार से बनाई गई है कि मंदिर के गर्भगृह में पूरे दिन सूर्य का प्रकाश बना रहता है।
सरस्वती मंदिर, गंगईकोंडचोलपुरम: यह मंदिर भगवान विष्णु की पत्नी सरस्वती को समर्पित है और माना जाता है कि यह भारत का सबसे प्राचीन सरस्वती मंदिरों में से एक है।
चिदंबरम नटराज मंदिर: यह मंदिर भगवान शिव के नटराज रूप को समर्पित है और तमिलनाडु के चिदंबरम में स्थित है। यह मंदिर चोल शासनकाल के दौरान बनाया गया था, हालांकि बाद के समय में इसका जीर्णोद्धार किया गया था।
चोल स्थापत्य कला का प्रभाव (Influence of Chola Architecture)
चोल स्थापत्य कला का प्रभाव न केवल दक्षिण भारत बल्कि पूरे भारत में पड़ा। बाद के शासनों, जैसे पांड्य वंश (Pandya Dynasty) और विजयनगर साम्राज्य (Vijayanagara Empire) की स्थापत्य शैलियों में चोल स्थापत्य कला के तत्व देखने को मिलते हैं। चोल मंदिरों की भव्यता और स्थापत्य कला ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, जैसे कंबोडिया और थाईलैंड, की कला और स्थापत्य शैली को भी प्रभावित किया।
चोल मंदिरों की संरक्षण (Preservation of Chola Temples)
चोल मंदिर सदियों पुराने हैं और उन्हें संरक्षित करना आवश्यक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इन मंदिरों के संरक्षण और जीर्णोद्धार का कार्य करता है। इसके अलावा, स्थानीय समुदायों को भी इन मंदिरों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके चोल मंदिरों के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, लेजर सफाई जैसी तकनीकों का उपयोग करके मंदिरों की दीवारों और मूर्तियों की सफाई की जा रही है।
चोल मंदिरों की यात्रा (Visiting Chola Temples)
चोल मंदिर आज भी पर्यटकों और कला प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। ये मंदिर हमें चोल वंश साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
चोल वंश साम्राज्य के स्थापत्य चमत्कार, विशेष रूप से बृहदेश्वर मंदिर और तंजावुर पेरुवुदैयार मंदिर, भारत की समृद्ध कलात्मक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये मंदिर न केवल अपनी भव्यता के लिए बल्कि अपनी स्थापत्य कला की उत्कृष्टता के लिए भी प्रसिद्ध हैं। चोल स्थापत्य कला हमें उस समय के शिल्प कौशल और इंजीनियरिंग कौशल की अद्भुत झलक प्रदान करती है।
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